गीता ज्ञान पर अति-प्रेरणादायी कविता । बस कर्म करते जाओ तुम।
गीता ज्ञान पर हिंदी प्रेरक कविता
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Gita kaa updesh
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Gita kaa updesh
चिंता कर परिणामों की न
खुद को यूँ उलझाओ तुम।
कर्म तुम्हारे वश में हैं
बस कर्म करते जाओ तुम।
माना हो तेज धनुधर अर्जुन
तुमसा तो कोई और नहीं।
निकले हो जिसपे बाण चलाने
हिरण पे किन्तु जोर नहीं।
अफसोस नहीं चूक जाने का
अपना ये बाण चलाओ तुम
कर्म तुम्हारे वश में हैं
बस कर्म करते जाओ तुम।
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चलते चलते तुम थक जाओ
धीरज भी निर्बल हो जाये।
कर्मो के परिणाम यदि
बिपरीत पे बिपरीत भी आये।
शोक के उन घड़ियों में भी
धैर्य नहीं गवाओं तुम।
कर्म तुम्हारे वश में हैं
बस कर्म करते जाओ तुम।
कर्म फल की मोह करो न
निश्चित ही सुन्दर होगा।
पाँव तले मंजिल होगी
जो कर्म भाव अंदर होगा।
पूरी होगी हर अभिलाषा
मेहनत पे ध्यान लगाओ तुम।
कर्म तुम्हारे वश में हैं
बस कर्म करते जाओ तुम।
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Hindi Inspirational Poem |
क्या करना, क्या न हैं करना
भले बुरे का ध्यान रहे।
चलते वक्त हे राही तुझको
सही दिशा का ज्ञान रहे।
ज्ञान बिना अनजान दिशा में
खुद को न भटकाओ तुम।
कर्म तुम्हारे वश में हैं
बस कर्म करते जाओ तुम।
कविता का उद्देश्य एवं संक्षिप्त विवरण
!!कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।!!
16 कलाओं से संपन्न भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कही गई इस श्लोक पे आधारित ये कविता हर व्यक्ति को कर्म करने का सही उदेश्य और सही मार्ग बताती हैं।
कर्म तुम्हारे वश में हैं
बस कर्म करते जाओ तुम।
इंसान जीवन में तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक वह स्वयं से सच न बोले, जब तक अपनी कमियों को न पहचान ले और जब तक वास्तविकता को स्वीकार न कर ले और वास्तविकता यहीं हैं की आपके हाथ में सिर्फ और सिर्फ कर्म हैं, परिणाम आपके हाथ में नहीं हैं। लेकिन ये भी नहीं हैं कि आप कर्म करो और परिणाम आपको न मिले। मैंने पहले भी एक लेख में कहाँ था हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती हैं।
"Every action has a reaction"
ये जो प्रतिक्रिया हैं यही तो फल हैं जो आपको निश्चित ही मिलता हैं लेकिन ये प्रतिक्रिया ठीक वैसे ही होती हैं जैसे क्रिया की जाती हैं। बात थोड़ी वैज्ञानिकता और तकनिकी दृष्टिकोण से कही जा रही हैं इसे जरा ध्यान से समझने की जरूरत होगी यदि आप समझ गए तो काम के प्रति आपका नजरिया हमेशा के लिए बदल जायेगा।
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फिर से वापस आते हैं कि आपका Action जैसा होगा Reaction भी ठीक वैसा ही होगा और यही Reaction आपके कर्म का परिणाम हैं। यदि परिणाम वैसे नहीं आ रहा हैं जैसा आप चाहते हैं तो ये निश्चित हैं की आपका काम वैसे नहीं हो पा रहा हैं जैसा परिणाम आने के लिए चाहिए। इसलिए अपने काम कि समीक्षा कीजिये और उसमे सुधार कीजिये और लगातार प्रयत्न करते रहिये। यदि सारा का सारा फोकस काम पे हो और वो भी सही दिशा में तो परिणाम निश्चित ही आपके अनुकूल होगा।
श्रीमदभगवत गीता में सारे ज्ञान समाहित हैं आपको जो चाहिए वो ग्रहण कर सकते हैं। कृष्ण कहते हैं 'हे अर्जुन माना कि तुम सर्वश्रेष्ठ धनुधर हो, तुम्हारे बाण अचूक हैं और तुम हर लक्ष्य को भेद सकते हो फिर भी उस हिरण पे तुम्हारा क्या अधिकार हैं जिसपे तुम निशाना साध रहे हो। वो हिरण तो भाग भी सकता हैं न। तुम्हारी सीमा केवल बाण अनुसन्धान तक सीमित है, तुम्हारे हाथ में केवल इतना हैं कि तुम सर्वश्रेष्ठ तरीके से निशाना साधो। हिरण को लगना या न लगना तुम्हारे हाथ में नहीं हैं। ये जानते हुए भी कि परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं हैं फिर भी तुम्हे बाण चलाना हैं क्योंकि तुम्हे अपना कर्म करना हैं।'
ये सही हैं कि फल, सफलता, परिणाम हमारे हाथ में नहीं हैं लेकिन कर्म करने से ही तो इसे प्राप्त करने कि संभावना होती। कर्म न करने से तो संभावना भी नहीं होती। कई लोगो का मानना हैं कि फल, सफलता, मनवांछित परिणाम के मोह ही तो कर्म करने की प्रेरणा देता हैं। यदि मन में कोई इच्छा ही न हो तो इंसान कोई भी काम सिद्द्त से करेगा ही क्यों? और यदि मन में कोई महत्वकांक्षा ही न हो तो व्यक्ति किस उद्देश्य के साथ आगे बढेगा? हाँ ये सही हैं की सफलता की चाह इंसान को काम करने के लिए प्रेरित करती हैं लेकिन यह प्रेरणा क्षणिक मात्र होती हैं और दुखदायी भी होती हैं। दुखदायी इसलिए होती हैं कि जैसे ही परिणाम विपरीत आता हैं, सपने टूट जाते हैं और व्यक्ति धाराशाई हो जाता हैं।
ठीक इसके विपरीत यदि किसी व्यक्ति का कर्म ही इच्छा हैं यानि केवल काम करने में ही उसे सुख प्राप्त होता हैं, वो हमेशा काम के बारे सोचता हैं और काम को और बेहतर बनाने में ही उसे आनंद आता हैं तो विपरीत परिणाम के आने पर भी उसे पीड़ा नहीं होती। और जिसे परिणाम का मोह ही नहीं हैं उसका काम से ध्यान भंग नहीं होता और जिसका ध्यान भंग नहीं होता उसका काम सर्वश्रेष्ठ होता हैं और जिसका काम सर्वश्रेष्ठ होता हैं उसका परिणाम भी सर्वश्रेष्ठ ही होता हैं। इसलिए सारा का सारा ध्यान काम को सर्वश्रेष्ठ बनाने में होना चाहिए तभी सारी सफलताएं कदमों में होती हैं।
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यहां एक बात और महत्वपूर्ण हैं कि कर्म हमेशा सही दिशा में होनी चाहिए। आपको पता होनी चाहिए कि आपको करना क्या हैं। ज्यादातर लोगो को पता ही नहीं हैं कि उन्हें करना क्या हैं और उन्हें करना क्या चाहिए। सारी असफलताओं का जड़ भी यहीं हैं। लोग दूसरे सफल व्यक्ति को देख कर उसी राह पे चल देते हैं उन्हें खुद पता ही नहीं होता कि उनकी अपनी राह कौन सी हैं। हर व्यक्ति किसी न किसी क्षेत्र/काम में माहिर होता हैं। आप भी अपने अंदर झाँकिये, गौर से देखिये आप किस काम में माहिर हैं, कौन सा ऐसा काम हैं जिसमे आपकी ज्यादे दिलचस्पी हैं। अपने आप को पहचानिये कि आप किस लिए बने हैं। इसमें थोड़ा वक्त लग सकता हैं लेकिन तब तक चलना शुरू मत कीजिये जब तक आपको अपने रास्ते का पता न चल जाए। जिस दिन आपको आपका रास्ता मिल जाये उसपे चलना या दौड़ना शुरू कर दीजिये।
"आपका परिश्रम तभी सार्थक होगा जब वो परिश्रम आपके अपनी दिशा में हो।"
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