जाती धर्म पर कविता। आओ ऐसा धर्म बनाये।
जाती धर्म पे आधारित कविता
Jati Dharm Par Hindi Kavita |
ऊंच नीच की भेद नहीं
ना छूआ छूत की बात हो।
आओ ऐसा धर्म बनाये
जहाँ एक मजहब एक जात हो।
ना खुदा पुकारे जाये जहाँ
ना पत्थर पूजे जाए जहाँ।
इंसानों को इंसानो में
भगवान नजर आये जहाँ।
मंदिर-मस्जिद के पीछे अब न
मिटने की हालात हो।
आओ ऐसा धर्म बनाये
जहाँ एक मजहब एक जात हो।
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पूरब और न पश्चिम को
अपनी दिशा बताये हम।
सूरज, चाँद, सितारों पे भी
हक नहीं जताये हम।
दिन का मालिक सूरज हो।
और चाँद की अपनी रात हो।
आओ ऐसा धर्म बनाये
जहाँ एक मजहब एक जात हो।
गुमराह कोइ न कर पाए।
बांट हमें कोई टुकड़ो में
ना झोली अपनी भर पाए।
मजहब के नाम पे ठगने की
न किसी की अब ख्यालात हो।
आओ ऐसा धर्म बनाये
जहाँ एक मजहब एक जात हो।
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धर्म के इन अखाड़ों में
खून जहाँ ना बहता हो।
नाम पे छोटी जाती के
कोई लाख दुःख न सहता हो।
सम्मान जहाँ न कुचली जाये
मरती न जज्बात हो।
आओ ऐसा धर्म बनाये
जहाँ एक मजहब एक जात हो।
जन्म से पहले एक ही थे
मरने पे एक ही होना।
जात-पात के बोझ को फिर
क्यों कंधो पर ढोना हैं।
न डर लगे इंसानो से
न होती जहाँ आघात हो।
आओ ऐसा धर्म बनाये
जहाँ एक मजहब एक जात हो।
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कविता का उद्देश्य
ऊंच नीच की भेद नहीं
ना छूआ छूत की बात हो।
धर्म बने अब एक जहाँ
बस एक मजहब एक जात हो।
सदियों से नजाने कितने लाख लोगो की जान जाती और धर्म के नाम पर बेवजह की खुनी लड़ाई में चली गई हैं। आज भी विश्व में रोज नजाने कितने लोगो की जान सिर्फ जाती और धर्म के नाम पर चली जाती हैं। दुःख की बात तो यह हैं की आज जहाँ इंसान चाँद, मंगल तथा अन्य ग्रहों पे इंसान को ले जाने की तकनीक खोजने में लगा हैं, जहाँ हर परिवार आज शिक्षा और समृद्धि चाहता हैं, जहाँ रोज नये नये तकनीक खोजे जा रहे हैं और टेक्नोलॉजी ने पूरी दुनिया बदल के रख दिया हैं वहां आज भी कुछ ऐसे लोग हैं जो जाती धर्म के नाम पर एक दूसरे को मरने मारने को तैयार हैं। दिल्ली में हुए दंगे इसका सबसे जीवंत उदाहरण हैं।
दंगे क्यों होते हैं?
दंगे होने का सबसे बड़ा कारण ही अलग अलग धर्म और जाती का होना हैं। इसी व्योवस्था कारण समाज आपस में बटना शुरू हो जाता हैं। जरा सोचिये यदि हिन्दू, मुसलमान, सिख और ईसाई के जगह सिर्फ इंसान या मानव जाती होती तो कितने बेवजह के दंगे होते ही नहीं और कितने लाख लोगो की जान अभी तक इस खुनी झड़प में जाने से बच गई होती। सिर्फ एक जाती होती मानव जाती और सबका धर्म भी एक ही होता, सबका तौर तरीका भी एक ही होता तो फिर किस लिए दंगे होते। यदि इतने सारे धर्म, समुदाय और जाती नहीं होती तो दंगों का 99 प्रतिशत मुद्दा ही नहीं होता और नाहीं किसी को जातिगत हिंसा भड़काने का अवसर मिलता हैं। ना मंदिर, ना मस्जिद, ना चर्च होते और यदि होते भी तो इनमे से कोइ एक ही होते तो दूसरे का अपमान भी नहीं होता।
अशिक्षा भी दंगों का कारण होता हैं?
कई लोगो का मानना हैं की दंगों का एक कारण लोगो का अशिक्षित होना भी हैं जो की मेरे हिसाब से पूरी तरह गलत हैं। दिल्ली में हुए दंगे इसके भी सटीक उदाहरण हैं क्योंकि भारत में दिल्ली शिक्षा के मामले में केरल के बाद दूसरे स्थान पर हैं यानि दिल्ली शिक्षित हैं फिर भी यहां धर्म के नाम पर खून बहाया गया, एक दूसरे के घर दुकाने गाड़िया जलाई गई। ऐसे दंगों का सिर्फ और सिर्फ एक ही कारण हैं समाज में धर्म और जातिगत व्योवस्था। ये व्योवस्था भारत में इतने संवेदनशील हैं और इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव इतना दृढ़ हैं की पूरी तरह शिक्षित व्यक्ति भी इसके प्रवाह में बह जाता हैं।
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दंगों को कैसे रोका जा सकता हैं?
वैसे तो ये बहुत कठिन कार्य हैं क्योंकि इसका सीधे सम्बन्ध धर्म, जाती और मानसिकता से हैं फिर भी कुछ प्रयासों से इसे कम किया जा सकता हैं:
- धर्म और जाती व्योवस्था को महत्व न देना - आज के इस आधुनिक काल में हर इंसान यदि इन व्योवस्थाओं पर जरा भी ध्यान न दे और अपने कार्य में लगा रहे, अपनी मानसिकता को व्यापक बना ले और इस जातिगत व्योवस्था को एक पुरानी भूल समझ कर इसमें उलझने के बजाय इससे बचने कोशिश करे तो किसी भी दंगे को व्यापक बनने से रोका जा सकता हैं।
- धर्म, खुदा, ईश्वर खतरे में हैं ऐसा सोचना बंद करना होगा- अक्सर किसी भी दंगे की शुरुआत यहीं से शुरू होती हैं की धर्म, खुदा या ईश्वर खतरे में हैं इसकी रक्षा करनी होगी। आप किसी भी समुदाय के हैं और यदि आप सच में उसको मानते हैं तो यकीन मानिये कि वो सच में सर्वशक्तिमान हैं और जो सर्वशक्तिमान हैं उसे किससे खतरा हो सकता हैं। जो खुद ही सर्वशक्तिमान हैं उसकी रक्षा आप करोगे? जरा अपने दिल से पूछिए क्या सच में आप उसकी रक्षा कर सकते हैं। भगवान, खुदा कभी खतरे में हो ही नहीं सकता ये सिर्फ आपके मन का फितूर हो सकता हैं जो किसी धर्म के ठेकेदार ने आपके मन और दिमाग में भर दिया हैं। ये सोचना कि ईश्वर, खुदा खतरे में हैं उसका अपमान करने जैसा हैं।
- दंगा सिर्फ एक साजिश हैं इस बात को समझ लेना - लगभग सभी दंगे कही न कही किसी न किसी के साजिस से ही होते हैं और आम नागरिक बिना इसको समझें उसमे कूद जाता हैं। इसे हर व्यक्ति को समझना ही होगा कि ये दंगे किसी के लिए लाभ के सौदा जैसा हैं ये जितना व्यापक होगा उतना ही किसी के लिए फायदे और नुकसान का सौदा होगा।
- दंगा रोकने में सरकार कि भूमिका- दंगा मुक्त समाज बनाने में सरकार कि अहम भूमिका हो सकती हैं यदि वह चाहे तो। सरकार इसके लिए सख्त कानून बना सकती हैं।
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- दंगा मुक्त समाज बनाने में प्रशासन की भूमिका- कहा जाता हैं कि यदि प्रशासन चाहे तो किसी भी प्रकार के दंगे को महज कुछ ही घंटो में रोक दिया जा सकता हैं। कई जगह ऐसा होता भी हैं। किन्तु और भी प्रभावशाली तरीके से काम करने के लिए प्रशासन कुछ और कार्य भी कर सकता हैं जैसे एक टास्क फोर्स का गठन करना जिन्हे ऐसे दंगों से कुशलता पूर्वक बिना क्षति के निपटने की कुशल ट्रेनिंग दी गई हो। जिला या ब्लॉक स्तर पर जागरूकता अभियान भी चलाया जा सकता हैं जिससे लोग भी इसके प्रति जागरूक हो सके। अपराधियों को तुरंत हिरासत में लेकर बिना भेद भाव के उचित कार्यवाही करते हुए उचित सजा दिलवाने से भी इसे कम किया जा सकता हैं।
इस कविता और ऊपर लिखें संक्षिप्त विवरण (लेख) को पढ़कर आपने भी जातिगत व्योवस्था की बुराइयों को समझने एक छोटा सा प्रयास किया हैं। ऐसे और भी प्रेरणादायक कविता पढ़ने के लिए आप मेरी वेबसाइट www.powerfulpoetries.com पे जा सकते हैं या ऊपर मेन्यु बार में Home पे क्लिक करके भी आप अन्य कविताएं पढ़ सकते हैं।
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