सोच बदल देने वाली हिंदी कविता। विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
घने वृक्षों की छांव में
जो बचपन बीता करता है।
आंधी और तूफानों से
वो कभी न जीता करता है।
आए जरा सी तेज हवा तो
संभले नहीं संभलता है।
लड़ता है तूफानों से
विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
धीरज जरा न खोता है।
शीतलता कहां दे पाता
धूप में जो न जलता है।
लड़ता है तूफानों से
विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
तो अडिग रहना होगा।
पतझड़, पूस की सर्दी और
ज्येष्ठ कि धूप सहना होगा।
होती उदय कभी न उसकी
जो ढलने से डरता है।
होती उदय कभी न उसकी
जो ढलने से डरता है।
लड़ता है तूफानों से
विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
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(इस कविता का copyright कराया जा चुका है। इस कविता का मकसद आपको प्रेरित करना है। किसी भी व्यायसायिक कार्य में बिना अनुमति के इसका प्रयोग वर्जित है।)
निचे इस कविता का उदेश्य एवं संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा हैं जिसे आपको अवश्य ही पढ़नी चहिये क्योंकि यह प्रेरणा से भरा हुआ एक अति-प्रेरणादायक लेख हैं।
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कविता का उद्देश्य एवं संक्षिप्त विवरण
छूता नहीं उचाईयों को
दीवारों में जो पलता है।
लड़ता जो तूफानों से
विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
यह हिंदी प्रेरक कविता सभी बच्चों, छात्रों, युवको तथा उनके माता-पिता को एक बहोत ही महत्वपूर्ण संदेश दे रही है, कि जो वृक्ष घरों के अंदर होता है या जिसके चारो तरफ सुरक्षा का घेरा होता है, वो वृक्ष कभी भी विशाल नहीं बन पाता। किन्तु जो वृक्ष किसी भी सुरक्षा से दूर अकेले खड़ा रहता है तथा धूप, वर्षा, आंधी-तूफ़ान सबकुछ सहन करता है वही वृक्ष एक दिन विशाल बनता है।
ठीक इसी प्रकार जिस व्यक्ति का बचपन बहोत ही ज्यादे सुख और सुविधाओं के घेरे मे बीतता है वो कभी भी अपने दम पर बड़ी कामयाबी हासिल नहीं कर पाते। जैसे सोने मे चमक लाने के लिए उसे आग मे तपना ही पड़ता है तथा सुनार के हाथों घिसना ही पड़ता है ठीक वैसे ही एक व्यक्ति को जीवन मे सफल होने के लिए मेहनत, कर्म और अभ्यास की अग्नि मे तपना पड़ता है।
अगर ऐसा नहीं होता तो पहले के ज़माने मे चक्रवर्ती राजाओं के बच्चे गुरु के आश्रम क्यों जाते, वहा के साधारण बच्चों के साथ रहकर, अपना सारा काम स्वयं ही करते हुए शिक्षा क्यों प्राप्त करते। क्योंकि एक बालक जब तक स्वालम्बी बनने की शिक्षा नहीं लेता तब तक वो किसी भी कार्य मे सफल नहीं हो सकता।
समय काल में संकट के भी
जो अधीर न होता है।
दुखदाई पतझड़ में भी जो
जो अधीर न होता है।
दुखदाई पतझड़ में भी जो
धीरज जरा न खोता है।
शीतलता कहां दे पाता
धूप में जो न जलता है।
लड़ता है तूफानों से
विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
इस पंक्ति से यह शिक्षा मिलती है की जो व्यक्ति संकट के समय मे भी अपना धैर्य नहीं खोता है और जो विपत्ति के वक्त भी स्थिर रहता है, अंततः वही विजय प्राप्त करता है। एक बात और महत्वपूर्ण है कि दुसरो को शीतल छाव वही वृक्ष दे पाता हैं जो तेज धूप को स्वयं ही सहन करता है अर्थात जो व्यक्ति स्वयं ही मुसीबतो का सामना करने की क्षमता रखता है वही अपने प्रियजनों को सुख दे सकता है। और ये सब तभी संभव है जब व्यक्ति बचपन से ही स्वालम्बी बनने की शिक्षा ले रखी हो।
बनना है विशाल अगर जो
तो अडिग रहना होगा।
पतझड़, पूस की सर्दी और
ज्येष्ठ कि धूप सहना होगा।
होती उदय कभी न उसकी
जो ढलने से डरता है।
होती उदय कभी न उसकी
जो ढलने से डरता है।
लड़ता है तूफानों से
विशाल वृक्ष वहीं बनता है।
यदि किसी भी छात्र, युवा या व्यक्ति को बहुमुखी प्रतिभाशाली व्यक्तित्व प्राप्त करना है तो उसे हर परिस्थिति से गुजरने का अनुभव होना चाहिए। उसके पास मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति मे भी अडिग रहने का साहस होना चाहिए। किन्तु किसी भी व्यक्ति में ये सब रातो रात नहीं आता, बल्कि इसका निरंतर अभ्यास करने से आता हैं।
एक बात सही कि जो ढलने से नहीं डरता है उदय भी उसी की होती है और जिस प्रकार रात कितनी भी काली हो किन्तु उसमें इतनी शक्ति नहीं होती की सुबह न होने दे ठीक इसी प्रकार मुसीबत कितनी भी बड़ी ही किन्तु इसमें इतनी शक्ति नहीं होती जो आपको सफल होने से रोक दे यदि आप का संकल्प दृढ है।
उम्मीद करता हूं कि इस प्रेरणादायक कविता से आपको काफी प्रेरणा मिली होगी। ऐसे ही और प्रेरणादायक कविताएं पढ़ने के लिए आप मेरी वेबसाइट www.powerfulpoetries.com पर जा सकते है जहां से आप आपने आप को लगातार Motivate कर सकते है।
Thank you for reading this
Hindi Motivational Poem
"This is not only a Hindi Motivational Poem but also a Life Changing Poem."
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