!! जब पांच साल के होते थे !!
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Bachpan wale din |
एक पल में ही हँसते थे
एक पल में ही रोते थे।
कितना अच्छा लगता था
जब पांच साल के होते थे।
ना दर्द थे ना गम थे
मुस्कान भी वो सच्चे थे।
छोटी छोटी आँखों में।
सपने अच्छे अच्छे थे।
बैठ जिन्हे बगीचे में
फुरसत से संजोते थे।
कितना अच्छा लगता था
जब पांच साल के होते थे।
![Bachpan ke sunhare pal Bachpan ki masti](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgiwchyphenhyphennOEKWMgGvjJog1L8dqdG1JkcVWPekToqjOLNs_jBcM37FXxqbwxiqVGEj44Z-Gqa7Ni-oQtvW6sb-VqQN3zc8ddDeeZzXswAOFmKBH2yMn-kcNqvWhI-QZCRgHNfvf2_t9ohZZc/w400-h266/Bachpan-wale-din.jpg) |
Bachpan ke sunahare din |
दादी नानी के किस्सो पे
रात रात भर जगते थे।
नन्हे मुन्ने उन यारों संग
खूब ठहाके लगते थे।
खुले अंबर के निचे ही
बड़ी चैन से सोते थे।
कितना अच्छा लगता था
जब पांच साल के होते थे।
गिरते थे, सम्भलते थे
किन्तु वो दर्द न ऐसे थे।
मईया बाबा का राजा थे
भले पास न पैसे थे।
दुनिया भर के बोझ लिए
ना कंधो पे इन ढोते थे।
कितना अच्छा लगता था
जब पांच साल के होते थे।
![Bachpan-ke-din Bachpan-ke-sunhare-din](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjjyr70UjaNz7EEpdTxQJsPp1l-Lrhn1niYSTy0wivwYZUyi_lgISmA8REu64jLquuVxA1eyIsWxUYmyUPpStxgwtkNtRkCUtYZ3G6aaOd_7iWbwadFuY3Vo5RC9-ip8ELsAhzJt-BYwng/w400-h268/Bachpan-par-Hindi-kavita.jpg) |
Bachpan ki yaden |
अब कहाँ वो खुशियाँ हैं
अब कहाँ वो बचपन हैं।
दुःख, चिंता और मायूसी
अब यही तो अपना जीवन हैं।
झूठे रुतबे के खातिर तो
सच्ची मुस्कान ना खोते थे।
कितना अच्छा लगता था
जब पांच साल के होते थे।
वही बरगद का पेड़ अब तो
बेगाना सा लगता हैं।
अब भी चाँद निकलता हैं
पर अनजाना सा लगता हैं।
चांदनी में जिसकी खुद को
सारी रात भिगोते थे।
कितना अच्छा लगता था
जब पांच साल के होते थे।
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(इस कविता का copyright कराया जा चुका है। इस कविता का मकसद आपको फिर से अपने सुनहरे दिन यानि बचपन से जोड़ने का हैं। किसी भी व्यायसायिक कार्य में इसका प्रयोग वर्जित है।)
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कविता का उद्देश्य
इस कविता के माध्यम से आपको आपके सबसे सुनहरे दिन यानि 'बचपन के दिन' में एक बार फिर से ले जाने का एक छोटा सा प्रयास किया गया हैं। कैसे किसी के डाटने पर फुट फुट कर रोने लगते थे और थोड़ी ही देर में किसी बात पर खुलकर हॅसने भी लगते थे। कितना सच्चा और खुला हुआ जीवन था कोई दिखावा नहीं सबकुछ एकदम सच्चा था।
कोई चिंता नहीं, कोई फिकर नहीं बस अपनी ही धून में मस्त थे। हर वक्त लड़ाई झगड़ा पर किसी के साथ कोई बैर नहीं। चोट लगने पर सबसे सटीक इलाज था माँ का फूँक और जिससे चोट लगे उसको एक दो थप्पड़ चाहे वो दरवाजा ही क्यों न हो। बस इतने से ही दर्द गायब हो जाता था और चेहरा फिर से खिल जाता था।
दादा जी के साथ बाजार जाने की ख़ुशी कि कोई न कोई चीज जरुर दिलाएंगे, पापा के घर आने पर ख़ुशी से सराबोर हो जाना की हमारे लिए भी कुछ न कुछ तो आया होगा। कही से भी घूम कर आने पर सीधे माँ के आँचल को देखना कि क्या रखा हैं हमारे लिए और माँ का खाना लेकर हमारे पीछे पीछे घूमना। भले ही परिवार की हालत तंग हो पर हम तो शहजादे थे। हर त्योहारों पे नए कपड़ो की जिद्द करना और हर हाल में प्राप्त करके ही रहना और उन कपड़ो को घूम घूम कर सबसे दिखाना। मामा के घर जाने का उत्साह और जाकर वहाँ पे रोब झाड़ना। घर आये मेहमान के जाने पर दो रूपये मिलना और उसी में सबसे अमीर हो जाना। क्या दिन थे काश वो फिर वापस आते।
भाइयो से मार खाना और फिर माँ से चुगली कर के उन्हें डांट खिलवाना और फिर हद से ज्यादे खुश होना। दोस्तों से लड़कर कमीज की बटन तोड़ देना और घर में बिलकुल शरीफ बनकर आना फिर भी दो तीन थप्पड़ खाना। थोड़ी देर रोने के बाद फिर सबका प्यार से दुलारना। क्या आनंद था उस दुलार में, उस लाढ़ में। सच में हम राजकुमार थे।
चिड़ियों को उड़ते हुए देखना फिर मन में कई सारे सपने सजाना। छोटी सी गौरैय को पकड़ने की कोशिश करना और पकड़ में आ गई तो रंग कर छोड़ना और हमेशा उसपे अपना हक जाताना। रात में खुले आसमान के निचे सोना और चाँद को जी भर कर देखना। अपनी कल्पनाओ पे सवार होकर चाँद के पास जाना या उसे अपने पास बुलाना। दादी नानी से डर-डर के भूतो की कहानियाँ सुनना और आधी रात में नींद खुलने पे घर में टंगे कपड़ो को देख कर डर जाना। ये हमारे मुख्य दिनचर्या थे।
कितने सुनहरे दिन थे वो क्यों इतनी जल्दी गुजर गए? झूठे रुतबे का कोई बोझ नहीं था, ज्यादे पैसे की जरुरत नहीं थी, रोटी और खाने की चीजो से प्यार था और बस इसी के लिए ही लड़ाई होती थी। ना नौकरी की चिंता ना बॉस का प्रेशर, ना किस्तों का बोझ। जो मन करें वही करना एकदम स्वतंत्र जीवन।
आज वही जीवन कितना बदल गया हैं। आज भी चिड़िया उड़ती हैं पर अब इनपे ध्यान ही नहीं जाता हमारा। वो बरगद जिससे इतनी पहचान थी हमारी, जो हमेशा हमारे लिए बाहें खोले रखता था, जिसके पास जाकर आनंदित हो जाते थे, वो आज भी वही खड़ा हैं पर अब बेगाना सा लगता हैं। आज भी रात होती हैं पर इस रात में वो शीतलता, वो शांति, वो शुकुन नहीं होता। वो चाँद आज भी तो निकलता हैं जिसे देख कर कभी हमारा मन फुले नहीं समाता था, जिसकी चांदनी हमारी आत्मा तक को रौशनी से भर देती थी पर अब वही चाँद अनजाना सा लगता हैं। सच में जीवन काफी बदल गया हैं, लेकिन आज भी जब उन सुनहरे पलों की याद आती हैं तो चेहरा खिल जाता हैं। गहरे आनंद के साथ साथ मन में एक अफ़सोस की लहर भी उठती हैं की आखिर क्यों वो दिन बीत गए।
उम्मीद करता हूं कि इस कविता के माध्यम से आपकी भी बचपन की यादें ताजी हो गई होंगी। यदि आप प्रेरणादायक कविताएं पढ़ना चाहते हैं तो आप मेरी वेबसाइट www.powerfulpoetries.com पर जा सकते है जहां से आप अपने आप को लगातार Motivate कर सकते है।
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List of Hindi Motivational Poems
Thank you for reading this
Hindi Poem
"This is not only a Hindi Poem but also a journey to childhood life again."
Nice
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