चिंता मिटाने वाली कविता। आज भी न रह पायेगा।
Poem for stress relief
Chinta door karne wali kavita |
सुख और दुःख से परे होगा
ये भेद समझ जो जायेगा।
बिता कल जो गुजर गया तो
आज भी न रह पायेगा।
सर्द, मेघ, बसंत, बहार
जैसे ये चलते रहते हैं।
ऋतुओं की भांति ही तो
समय बदलते रहते हैं।
वो सर्द से न भयभीत होगा
बसंत को न पछतायेगा।
बिता कल जो गुजर गया तो
आज भी न रह पायेगा।
Tension khatm karne wali kavita |
भला इन बरसाती मेघो से
कब तक ही छुप पायेगा।
अभी अगर हैं काले बादल
तो सूरज भी आएगा
वह बादल का छोटा टुकड़ा
कब तक उसे छुपायेगा।
बिता कल जो गुजर गया तो
आज भी न रह पायेगा।
Chinta mitane wali kavita |
यही रीत हैं दुनिया की
यहाँ कोई नहीं ठहरता हैं।
कभी अमावस कभी पूर्णिमा
आना जाना रहता हैं।
लाख अंधेरा हो जाने से
चाँद नहीं खो जाएगा।
बिता कल जो गुजर गया तो
आज भी न रह पायेगा।
चकाचौंध में दिन के जो
जरा न विचलित होता हैं।
अंधियारे में घोर निशा के
धीरज वही न खोता हैं।
यह अँधियारा ही तो आखिर
नया सबेरा लाएगा।
बिता कल जो गुजर गया तो
आज भी न रह पायेगा।
कविता का उद्देश्य एवं संक्षिप्त विवरण
आज के दौर में एक नयी बीमारी काफी प्रचलित हुई हैं जिसका नाम हैं डिप्रेशन (उदासी)। वैसे तो यह कोई बीमारी नहीं हैं, किन्तु सही वक्त पे इससे बाहर नहीं निकले तो इसका भी परिणाम काफी भयंकर हो जाता हैं जिसका कई उदहारण हाल फिलहाल में ही हमारे सामने आये हैं।
आज हर व्यक्ति किसी न किसी बात को लेकर कही न कही इस बीमारी से थोड़ा बहोत ग्रसित जरुर हैं। कोई अपनी तंगी हालत को लेकर, कोई अपनी नौकरी को लेकर, कोई ऑफिस के काम और बॉस के रवैये को लेकर, कोई बढ़ती हुई महंगाई को लेकर, कोई व्यापार में आई प्रतिस्पर्धा या किसी भी प्रकार के कठिनाई को लेकर, कोई बच्चों कि पढ़ाई को लेकर या कोई बेटी की शादी को लेकर। लगभग सभी लोग इससे ग्रसित हैं।
किन्तु गौर करने वाली बात यह हैं कि आखिर क्या वजह हैं की आज हर व्यक्ति छोटी छोटी बातो पे डिप्रेशन में जाने लगता हैं? मेरे हिसाब से इसके पीछे सबसे बड़ा कारण हैं धैर्य की कमी होना हैं। आज की भागती हुई जिन्दगी में इंसानों ने धैर्य रखना ही छोड़ दिया हैं। और सच में देखा जाये तो दुनिया जिस रफ्तार से भाग रही हैं वहां धैर्य रखने का समय भी नहीं हैं और यही सबसे बड़ा कारण हैं डिप्रेशन में जाने का।
देखिये, 'अच्छा वक्त और बुरा वक्त' ये दोनों दिन और रात के जैसे हैं, एक के बाद दूसरे को आना ही हैं। लेकिन समस्या यह हैं कि आज के वक्त में जहा धैर्य हैं ही नहीं वहा पे दिन यानी अच्छा वक्त हैं तो सब ठीक हैं लेकिन जैसे ही रात यानि बुरा वक्त आता हैं, इंसान धरासाई हो जाता हैं। उसे लगता हैं कि सबकुछ ख़त्म हो गया और अब ये हमेशा ऐसा ही रहेगा।
इस कविता का यही तो उदेश्य हैं कि दुनिया कितनी भी तेजी से भागे लेकिन फिर भी इंसान को धैर्य तो रखना ही पड़ेगा जिससे कि बुरे वक्त में वह स्वयं कि रक्षा कर सके। किसी भी परिस्तिथि में खुद को संतुष्ट और शांत रख सके। हर परिस्थिति में खुद को संतुष्ट और शांत रखने का एक ही मूल मन्त्र हैं कि "जब वो दिन नहीं रहे तो ये दिन भी नहीं रहेंगे"
ये इतना अदभूत वाक्य हैं जिसके स्मरण मात्र से ही व्यक्ति भटकने से बच जाता हैं। यदि उसके अच्छे दिन हैं और वह इस वाक्य का स्मरण करता हैं तो कभी भी अहंकार में नहीं पड़ सकता। वह सदैव सचेत रहेगा कि ये दिन भी बदल जायेंगे। और जब व्यक्ति सचेत रहता हैं तो बुरे दिन आने की या तो संभावना कम हो जाती हैं या वह ऐसी तैयारी कर लेता हैं जिससे बुरे वक्त का एहसास ही नहीं होता।
और यदि व्यक्ति के बुरे दिन हैं और वह इस वाक्य का स्मरण करता हैं तो उसके अंदर एक उम्मीद बनी रहती हैं कि ये वक्त भी जरुर बदलेगा। यही उम्मीद उसे धरासाई नहीं होने देती हैं बल्कि इस परिस्थिति से बाहर निकलने की हिम्मत देती हैं और अंततः वह व्यक्ति सही सलामत बुरे वक्त से बाहर निकल जाता हैं।
यही रीत हैं दुनिया की
यहाँ कोई नहीं ठहरता हैं।
कभी अमावस कभी पूर्णिमा
आना जाना रहता हैं।
लाख अंधेरा हो जाने से
चाँद नहीं खो जाएगा।
बिता कल जो गुजर गया तो
आज भी न रह पायेगा।
ये बिलकुल सही बात हैं कि कितना भी घोर अंधेरा हो जाये किन्तु ऐसा नहीं हैं कि चाँद निकलेगा ही नहीं वह अँधेरे के ओट में कही खो जायेगा। चाँद जरुर निकलेगा किन्तु अपने निर्धारित समय पे। ठीक वैसे ही यदि किसी व्यक्ति का जीवन बुरे दौर से गुजर रहा हैं तो ऐसा नहीं हैं कि उसके अच्छे दिन नहीं आएंगे, अच्छे दिन जरूर आएंगे बस जरुरत हैं सब्र, धैर्य और प्रतीक्षा की।
Comments
Post a Comment