भावना से जुडी हिंदी कविता
![Gaon par kavita Purani yad par kavita](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjtyF_gUgZc7YhFtNmA9XlQpZnYQXq8Fj05A0j_8wPRtyfHsiYrae8CzPgym0jr9jFdJP0xwVLH05gCMsdS7uYMMNWqGDmIK09rtiU_petLo5Zl0gtLGDBEXKmExbaNs3fJAplhBG8oUAE/w400-h279/Purani-yad-par-kavita.jpg) |
Purani yaad par hindi kavita |
आंधी और तूफानों में भी
पर्वत के जैसे अड़ा था।
वो बरगद कहाँ गया जो
बरसों से यहां खड़ा था।
ज्येष्ठ की दोपहरी में जब
थके हारे से आते थे।
बड़ी चैन से उसकी शीतल
छाया में सो जाते थे।
पुरखो की निशानी था
वृक्षों में सबसे बड़ा था।
वो बरगद कहाँ गया जो
बरसों से यहां खड़ा था।
![Hindi poem on nature Prakriti par hindi kavita](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgc40RMzMLJ3g49WiO_CUx5fcs6eiXhoo0nN5pIpDk58uRs3GgBGduFmLTDNMr131CDi-cJbR7gVgUDhEHjd8UxHVvrMr-4R0UZLVFGW_pzbO7COe2r-KKe0Xj1E-Jyw2tJlkkeBE2M4iw/w400-h371/Prakriti-par-hindi-kavita.jpg) |
Bachpan ki yad par kavita |
दिए कई आनंद के पल
उसने कितनो के जीवन में।
कई बचपन ही बीत गए
खेल के उसके आँगन में।
हर पत्तों से परिचय थी
मैं हर टहनी पे चढ़ा था।
वो बरगद कहाँ गया जो
बरसों से यहां खड़ा था।
![Hindi poem on village Gaon par hindi kavita](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihmzaayBnaqxX-9Wl-AdYEOocM3J7dxrItHQTrffPHYdJBrQ9tSwt0BI9_YfPMiUsh9-kQ1OTlv9PLqcRTDDHV3IQP4eFFKAnoq5iCfJv0_oJVaYBgfgTaWRAm7okolJ54PZn-lk2zEvk/w379-h400/Gaon-par-kavita.jpg) |
Gaon par hindi kavita |
अच्छे-बुरे, बीते-गुजरे वो
कई हालात से गुजरा था।
कई पतझड़ को देखा था वो
कई बरसात से गुजरा था।
झुका नहीं एक बार भी
तूफानों से भी लड़ा था।
वो बरगद कहाँ गया जो
बरसों से यहां खड़ा था।
![Hindi poem on emotion Bawana par hindi kavita](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEitphZ9E13OA64Jl6DfyIlKyjtDfCi5pA4oolgKKLZJInQpsJegFXLKzAoDnqp_0Y4HdQmJXn9IaEdIfS_x-tJU1YOWddttovOyFu5QTRxUxsqs5wCPVnakXkdvkq7PPkG7rTgJBbUrEls/w400-h178/Bhawana-par-hindi-kavita.jpg) |
Bhawna par hindi kavita |
समझा होगा न रिस्तो को
फेरी होगी जिसने आरी।
दया तनिक न आई क्या
देख के उसकी लाचारी।
कोइ बता दो गिरने पे
किस दर्द में वो पड़ा था।
वो बरगद कहाँ गया जो
बरसों से यहां खड़ा था।
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(इस कविता का copyright कराया जा चुका है। इस कविता के माध्यम से सिर्फ एक भावना को प्रगट करने का प्रयत्न किया गया हैं। किसी भी व्यायसायिक कार्य में इसका प्रयोग वर्जित है।)
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यह कविता गांव के साथ एक अटूट रिश्ते को दर्शाती है। वैसे तो हर व्यक्ति के लिए उसके गांव की सभी वस्तु अविस्मरणीय होती हैं। खेत खलिहान, तालाब, मंदिर, पेड़-पौधे, बाग बगीचे इन सब के साथ उसका अटूट रिस्ता होता हैं और ये जीवन भर उसके साथ चलता रहता हैं। लेकिन यहां गांव से बाहर एक बरसो पुराने बरगद के पेड़ की चर्चा की जा रही हैं जिसे अब काटकर गिरा दिया गया हैं।
मैं पूरा बचपन गांव में बिताकर नौकरी करने शहर आ गया। चुँकि पूरा परिवार साथ ही था इसलिए गांव जाना कम होने लगा। कुछ साल बाद जब गांव गया तो काफी कुछ बदल गया था। नजारा मेन रोड से ही दिखने लगा जो चाय की दुकान मिट्टी की थी वो अब ईंट से बन गई थी हालांकि अभी भी पलस्तर नहीं हुआ था लेकिन पक्का हो गया था। कुछ और नई दुकाने बन गई थी। बाजार में पहले से ज्यादे भीड़ और रौनक थी। नाई की टूटी हुई दुकान जहां पहले 12*18 इंच के शीशे लगे होते थे अब एक शानदार शैलून बन गया हैं जहां फैशियल, ब्लीच, फेस मसाज, हेयर मसाज सब होते हैं।
अब गाड़ी रोड से दाये मुड़ी और हम गांव के अंदर बढ़े। यहां भी काफी कुछ बदल गया था। जहां मिट्टी के घर थे वहां पक्के मकान बन गए थे, जहाँ पहले एक मंजिल के मकान थे वो अब दो मंजिल के नजर आ रहे थे, लोग चारपाई की जगह अब कुर्सियों पे बैठे नजर आ रहे थे। और गांव के अंदर भी गाड़ियों की आवाजाही काफी बढ़ गई थी।
घर पहुँच कर थोड़ी देर आराम करने के बाद बाहर निकला और वही से गुजरा जहाँ पूरा बचपन खेल कर बिताया था। अचानक से लगा कि गांव ने कुछ बरसों पुराना धरोहर खो दिया हैं। जहाँ एक वक्त लोगो कि भीड़ लगी होती थी, बैल, गाय, भैसों का मेला सा लगा होता था। जहाँ बच्चों के अलग अलग खेल हुआ करते थे, बड़ो का रम्मी के खेल में पान की बाजी लगी होती थी और बुजुर्गो के गमछे की बिस्तर लगी होती थी।
वही जगह आज बीरान पड़ी हैं क्योंकि इन सबका सूत्रधार, इन सभी मोतियों का धागा वो बरगद का पेड़ आज यहां नहीं हैं क्योंकि कुछ महीने पलहे उसे काट दिया गया था। इस वीरान मंजर को देखकर इस जगह से जुडी स्मृतियाँ एक धारा बन कर आँखों के सामने बहने लगी।
कैसे गर्मियों के दिन में जब स्कूल की छुटियाँ होती थी तो सारा दिन हम इसी बरगद के निचे खेलकर बिताया करते थे। सुबह का खाना खाने के बाद सिर पे दादा जी के लिए चटाई और हाथ में गाय की रस्सी पकड़ सीधे इसी पेड़ के निचे आ जाते और यहां आने के बाद ऐसा लगता था जैसे अपने सुनहरे महल में आ गए हो। कभी पकड़म पकड़ाई कभी गिल्ली डंडा कभी इसकी टहनी पकड़ कर झूला झूलना कभी टहनियों पे चढ़ना। पूरा दिन कैसे बीत जाता था पता ही नहीं चलता था।
जब बढ़े हुए तब भी इसी बरगद के निचे बैठकर घंटो घंटो तक राजनीती, सिनेमा, क्रिकेट इत्यादि पर चर्चाये करते थे। कभी कभी पढ़ाई पर भी चर्चा हो जाती थी। घर पे कोइ मेहमान भी आये तो उसे भी पता होता की घर के सभी पुरुष सदस्य उसी बरगद के पेड़ के निचे मिलेंगे और वो सीधे वही आता था।
कोइ भी व्यक्ति कही से भी थक कर आये तो उसकी शीतल छाया में बड़ी चैन से सो जाता था। वो सबको एक समान शीतलता प्रदान करता था। वो पुरे मोहल्ले के लिए एक अभिभावक जैसा था। उसने हर बच्चे, युवा, बढ़े और बुजुर्ग के साथ एक अटूट सा रिस्ता बनाया था। किन्तु अब वो नहीं हैं। अब केवल हमारे पास उसकी छांया में बिताये अनमोल क्षणों की स्मृति मात्र हैं। वो हमसे बिना किसी उम्मीद के हमेशा हमें सुख देता था। उसके बिना आज वो जगह मरुस्थल सी लग रही हैं। उस जगह खड़ा होने पर आज मुझे आभास हो रहा था कि वास्तव में हमने एक अभिभावक को खो दिया।
उम्मीद करता हूं कि इस प्रकृति प्रेम पर कविता पढ़कर आप भी अपनी पुरानी यादों से एक बार फिर से जरुर जुड़े होंगे। और भी कविताएं पढ़ने के लिए आप मेरी वेबसाइट www.powerfulpoetries.com पर जा सकते है।
Thank you for reading this
Hindi Poem
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