मईया तेरी ममता की...। माँ पर खूबसूरत हिंदी कविता।
माँ पर हिंदी कविता
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Maa par hindi kavita |
खिदमत में मैं तेरी सारी
उम्र भी बिताऊंगा।
मईया तेरी ममता की मैं
कीमत चुका न पाउँगा।
एहसान तेरा हैं मुझपे कि
अपनी कोख से जन्म दिया
पल सभी और खुशियों के
मुझपे ही कुर्बान किया।
भटक न जाऊ राहो से
तू हाथ पकड़ कर चलती थी।
मैं झूठमूठ के गिरता था
तो सच्ची आंह निकलती थी
लाख जता लू मोह तुझसे
वो आंह कहाँ से लाऊंगा।
मईया तेरी ममता की मैं
कीमत चुका न पाउँगा।
शाम सबेरे दुनिया की
तू नजरों से बचाती थी।
एक काजल का टीका
मेरे माथे पे लगाती थी।
राह से मेरे मुश्किलों को
चुन चुन के हटाया हैं।
मेरे लिए मुसीबतों के
बोझ भी उठाया हैं।
लाख बड़ा हो जाऊ पर
वो बोझ उठा न पाउँगा।
मईया तेरी ममता की मैं
कीमत चुका न पाउँगा।
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Maa par khubshoorat kavita |
मैं बेवजह ही रूठता था
फिर भी तू मनाती थी।
लोरी सुना सुना के अपने
आँचल में सुलाती थी।
खेल कूद में चोट खाके
थका हारा सा आता था।
गोद जो बैठाती थी तो
दर्द मेरा मिट जाता था।
औकात नहीं हैं मेरी कि
वो सुख तुम्हे दे पाउँगा।
रे मईया तेरी ममता की मैं
कीमत चुका न पाउँगा।
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कविता का उद्देश्य
'माँ' इस संसार का सबसे पवित्र शब्द हैं और इतना पवित्र इसलिए हैं कि एक माँ ही हैं जो बिना किसी स्वार्थ के अपने संतान के लिए अपनी सारी खुशियाँ न्योछावर कर देती हैं। पुत्र जन्म के असहनीय पीड़ा में भी आनंद की अनुभूति करती हैं और किसी भी परिस्थिति में अपने बच्चों को तकलीफ में नहीं देखने का संकल्प करती हैं। इस माँ रूपी देवी की सेवा में यदि पूरी उम्र भी बीत जाये तब भी इसकी ममता की कीमत नहीं चुका पायंगे।
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ये माँ का एहसान ही हैं की वो अपने कोख से हमें जन्म देती हैं और हमारे ऊपर अपनी सारी खुशियाँ कुर्बान कर देती हैं। वो खुद ही हर मुसीबत से लड़कर हमारे चेहरे पे हमेशा मुस्कान रखना चाहती हैं और वो भी बिना किसी इक्षा और आकांक्षा के। इन सबके लिए अगर माँ के चरणों में अपनी प्राण भी रख दे तो भी ये कम हैं क्योंकि जीवन तो उसी ने दिया हैं लेकिन इसके साथ जो उसने त्याग किया हैं वो एक व्यक्ति के प्राणो के अतिरिक्त भी उसका ऋण हैं।
बच्चा भटक न जाये इसलिए माँ हमेशा उसका हाथ पकड़ कर चलती हैं और यदि बच्चा गिरने का नाटक भी करें तो माँ की सच्ची आंह निकल जाती हैं। माँ घबरा जाती कि उसके जिगर के टुकड़े को चोट तो नहीं लगी। यदि थोड़ी सी भी चोट लग जाये तो उसपे घंटो तक फूँक मरना प्यार उसे सहलाना। आज हम कितना भी मोह जता ले पर हमारे अंदर से वो सच्ची आंह नहीं निकल सकती।
अक्सर बचपन में जब खेल कूद में थक कर आते थे और जब माँ की गोद में बैठते थे तो सारे दर्द गायब हो जाते थे। माँ के गोद में स्वर्ण सिंघासन पे बैठने से भी अधिक सुख की अनुभूति होती थी। दुनिया की नजरों से बचाने के लिए हमेशा काजल का टीका हमारे माथे पे लगाती थी। हम कितनी भी कोशिश कर ले किन्तु ऐसा सुख हम माँ को नहीं दे सकते।
एक बच्चा बिना किसी वजह के ही बार बार रूठता हैं और जितनी बार रूठता हैं माँ उतनी बार मनाती थी। कोइ गुस्सा नहीं, कोइ शिकवा नहीं, बल्कि माँ और भी आनंदित होती हैं अपने बच्चे को मनाने में। लाख थकने के बावजूद भी देर रात तक लोरी सुनाकर बच्चे को सुलाना। एक माँ ही हैं जो निस्वार्थ भाव से अपने बचे के सारी मुसीबत उठा लेती हैं। अपने बच्चे पे आने वाली हर मुसीबत को अपने ऊपर लेने को हमेशा तैयार रहती हैं।
वास्तव में माँ का हृदय सागर से भी विशाल हैं, संतान के प्रति उसकी हिम्मत और हौसला हिमालय से भी ऊंचा हैं, उसकी सहनशक्ति पृथ्वी के समान हैं और उसकी लालन पालन एक तपस्या के जैसा हैं। इस तपस्या का फल निश्चित ही उसे सुन्दर और मनवांछित मिलना चाहिए। हम माँ की कितनी भी सेवा कर ले उसकी बराबरी तो नहीं कर सकते, लेकिन फिर भी हर व्यक्ति को एक छोटा सा संकल्प जरुर लेनी चाहिए कि इस जननी की, इस माँ रूपी साक्षात् देवी की सदैव जितनी आदर सम्मान और सेवा कर सके उतनी जरुर करेंगे।
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