रो रहा हुँ आज मैं। Pain of a doctor.
A POEM ON DOCTOR'S PAIN
थक कर या टूट कर भी
कर रहा इलाज मैं।
मौत का पर देख तांडव
रो रहा हुँ आज मैं।
जिंदगी तड़प रही है
आँखों के सामने।
मौत भी खड़ी है कई
हाथों को थामने।
दौड़ता हुँ सुनकर हर
चीखती अवाज मैं।
मौत का पर देख तांडव
रो रहा हुँ आज मैं।
भार जबसे ले लिया है
जिंदगी बचाने की।
राह भूल बैठा हुँ
घर अपने जाने की।
जन रक्षा में हुआ हुँ
वक्त का मोहताज मैं।
मौत का पर देख तांडव
रो रहा हुँ आज मैं।
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जीती है जंग कई
मुश्किलों के दौर में
आज हुँ उदास क्योंकि
वक्त ये कुछ और है।
अक्सर इन हाथों पर
करता था नाज मैं।
मौत का पर देख तांडव
रो रहा हुँ आज मैं।
कविता का उद्देश्य
Dr. Anil, AIIMS, Patna से बात करते-करते जब उन्होंने बताया कि बिना थके, बिना हारे कोरोना से लड़ने के बावजूद भी जब लोगो को ऐसे तड़पते हुए देखता हुँ तो मन रोने लगता है। मौत का ये तांडव देखकर आज हर मेडिकल स्टॉफ का दम घूटने लगा है सब यही प्रार्थना कर रहे है कि अब जल्दी से ये तांडव रुके और हर इंसान एक भयमुक्त वातावरण में सांस ले सके।
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उनसे बात करते करते ये महसूस हुआ कि सिर्फ आम इंसान ही नहीं बल्कि इस युद्ध के प्रथम श्रेणी के योद्धा डॉक्टर और मेडिकल स्टॉफ भी लोगो को तड़पते हुए देखकर बहोत दुःखी, हताश और निराश है। पुरे अथक प्रयासों के बावजूद भी जब कोई इनके सामने दम तोड़ता है तो इनके मन में भी दुःखो का सैलाब उमड़ उठता है। मन में अफसोस की भावना भर जाती है कि आखिर कहाँ कमी रह गई।
आज स्थिति ऐसी है कि डॉक्टर्स और मेडिकल स्टाफ कई कई दिनों तक अपने घर नहीं जा पाते है, अपने बच्चों और परिवार से नहीं मिल पाते है और यहां तक कि अपना व्यक्तिगत जीवन भी भूल गए है। इतना जोखिम होने के बाद भी दम घूटने वाला PPE किट पहनकर मरीजों का इलाज करना और उनको मौत के मुँह से बाहर निकालने की रोज जद्दोजहद करना। कभी इसमें सफल हो जाना तो कभी आँखों के सामने एक जीवन को खत्म होते देखना वास्तव में यह एक घूटन भरी जिंदगी से कम नहीं है।
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ऐसा नहीं है कि हमारे देश की मेडिकल व्योवस्था बहोत लचर है या हमारे देश में मेडिकल एक्सपर्ट की कमी है। हमारे देश में यदि मेडिकल स्टॉफ और एक्सपर्ट की कमी भी हो तभी इनका समर्पण इतना है कि आज से पहले कभी अभाव महसूस नहीं हुआ। लेकिन आज के इस वक्त ने मेडिकल व्योवस्था का अभाव महसूस करा दिया है ऐसा लगता है कि कुदरत खुद सामने खड़ी होकर बार बार चैलेंज कर रही है। एक लहर कम होते ही दूसरी लहर रफ्तार पकड़ लेती है। ऐसा लग रहा है कि नाँव किसी मझधार में फंसी हुई है और तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है।
ऐसे में हमारे डॉक्टर्स, मेडिकल स्टाफ और सभी फ्रंटलाइन वर्कर डटकर इस तूफान का सामना कर रहे है और वो नाँव जिसमें हम आम लोग सवार है उसे किनारे तक ले जाने के लिये जी जान से लगे हुए है। इस जद्दोजहद में कई डॉक्टर्स, मेडिकल स्टॉफ और फ्रंटलाइन वर्कर ने अपनी जान की कुर्बानी दे चुके है और कई खुद संक्रमित होकर भी सेवा में लगे हुए है। आराम करने की फुरसत नहीं है, अपनों से मिलने जुलने की हालत नहीं है, घरवालों के साथ सुकून से बैठकर खाना खाने का वक्त नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि अभी अपने देश के लोगो की जान बचाना सबसे ज्यादे जरुरी है।
उम्मीद करता हुँ सभी डॉक्टर्स, मेडिकल स्टाफ और फ्रंटलाइन वर्कर्स के इस समर्पण और प्रयासों को हम जैसे आम लोग और पूरा देश कभी नहीं भूल पायेगा।
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